प्राणायाम के रहस्य, प्राणायाम से रोगों का निदान, प्राणायाम से ईष्वर प्राप्ति एवं शरीर के रहस्मय तथ्यों की जानकारी
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हमने ‘योग-साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य’ नामक पुस्तको में प्राणायाम को छोड़कर योग का समग्र रूप् से वर्णन किया है। इस ‘प्राणायाम रहस्य’ में प्राणायाम एंव कुण्डलिनी जागरण का अनुभवात्मक प्रामाणिक वर्णन देने का प्रयत्न किया है। लाखों व्यक्तियों पर प्रयोगात्मक अनुभवों के आधार पर मेरा मानना है कि प्राणायाम का आरोग्य एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृश्टियों से विषेश महत्व है। रोगों के उपचार की दृश्टि से भी हड्डी के रोगो को छोड़कर शेष सभी व्याधियांे आसनों (योग ) से नहीं अपितु प्राणायाम से ही दूर हो सकती है।
प्राणायाम ही करता है रोगों की जड़ से मुक्ति
यह सुनना और पढ़ना आसान है परन्तु इसकी सत्यता पर जाना उतना कि कठिन है जितना एक नाकारा व्यक्ति का सफल हो जाना। हम प्राणायाम के द्वारा हृदयरोग, अस्थमा, स्नायुरोग, वातरोग, मधुमेह आदि जटिल रोगों की प्राणायाम के बिना निवृत्ति नहीं हो सकती तथा आसन भी तभी पूर्ण लाभदायक होते हैं जब प्राणायाम पूर्वक किए जाते हैं
आज के इस युग में हर कोई अपने आप को सुन्दर दिखाना चाहता है हर कोई बीमारीयों से रहित होना चाहता हैं परन्तु लागों को यह जानकर आष्चर्य होगो की हम डाॅक्टर के साथ अपना इलाज कराने के लिए महिनों का समय बिता देतेें परन्तु वह कार्य नहीं करते जिससे हमकों डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता ही न हो अतः अब यह आप पर निर्भर करता हैं कि आप रोग सहित जीवन चाहते हैं कि रोग रहीत जीवन चाहते हैं प्राणायाम योग में सांस नियंत्रण का अभ्यास है। व्यायाम के रूप में आधुनिक योग में, यह आसनों के बीच आंदोलनों के साथ सांस को सिंक्रनाइज़ करता है, लेकिन यह अपने आप में एक अलग श्वास व्यायाम भी है, आमतौर पर आसन के बाद अभ्यास किया जाता है। पतंजलि के भागवत गीता और योग सूत्र जैसे ग्रंथों में, और बाद में हठ योग ग्रंथों में, इसका अर्थ था श्वास का पूर्ण समापन।
प्राणायाम बालक से लेकर वृद्ध पर्यन्त सभी सहजता से कर सकते हैं।
पंच तत्वों में से एक प्रमुख तत्व वायु हमारे शरीर को जीवित रखने वाला और वात के रूप में शरीर के तीन दोषो में से एक दोष है, जो श्वास के रूप मे हमारा प्राण है।
पित्त, कफ, देह की अन्य धातुएँ तथा मल- ये सब पंगु है अर्थात ये सभी षरीर में एक स्थान से दुसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते। इन्हें वायु के द्वारा ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। जैसे आकाश में वायु बादलों को एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाता है। अतएव इन तीनों दोशों-वात,पित्त, कफ में वात (वायु) ही बलवान है,क्योकिं वह सब धातु, मल आदि का
प्राणायाम एक संस्कृत यौगिक है। यह विभिन्न लेखकों द्वारा विभिन्न रूप से परिभाषित किया गया है।
मोनियर-विलियम्स ने कुंभक के तत्वों के संदर्भ में प्राणायाम को परिभाषित किया।
मोनियर-विलियम्स ने साध्य के दौरान किए गए "तीन-श्वास-अभ्यासों" के रूप में यौगिक प्राणायाम को परिभाषित किया है यह तकनीकी परिभाषा सांस की एक विशेष प्रणाली को संदर्भित करती है। भट्टाचार्य द्वारा बताई गई तीन प्रक्रियाओं के साथ नियंत्रण (सांस अंदर लेने के लिए), कुम्भक (इसे बनाए रखने के लिए), और इसे (डिस्चार्ज करने के लिए)। इस तीन-चरण मॉडल के अलावा प्राणायाम की अन्य प्रक्रियाएँ भी हैं। लेकिन यौगिक प्राणायाम में उपयोग के विशिष्ट मामले में वह 'संयम' को "संयम, नियंत्रण, रोक" के रूप में परिभाषित करता है।
विभाग करने वाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म अर्थात समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करने वाला शीतर्वीर्य है।
उपनिषदों में प्राण कोे ब्रम्हा कहा है। प्राण शरीर के कण-कण में व्याप्त है, शरीर के कमेन्र्दियों तो सो भी जाती है। विश्राम कर लेते हैं किन्तु यह प्राण शक्ति कभी न ता सोती है, न विश्राम ही करती हैं रातदिन शरिर में कार्य करती रहती है। अगर शरिर में वायु का प्रवाह बन्द हो जाए ता शरिर का अन्त सम्भव हो जाता है
यहां हमारा उद्येश्य आपकों प्राणायाम सिखाना व उसकी गुणवत्ता से रबरू कराना है क्या आप इस कला को सिखना चाहते हैं तो कृप्या कमेंट सेक्षन में बताऐ
प्राणायाम के रहस्य, प्राणायाम से रोगों का निदान, प्राणायाम से ईष्वर प्राप्ति एवं षरीर के रहस्मय तथ्यों की जानकारी देना है
धन्यवाद्
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धन्यवाद्
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